क्योंकि हर ग्रह कुछ कहता हैं…
पृथ्वी से लाखों करोड़ो मील दूर स्थित ग्रह मेरे जीवन को प्रभावित कर रहे हैं ! कैसे?
मैं कितनी भी कड़ी मेहनत करूँ ! मैं अपने कार्य में कितना भी कुशल क्यों न हूँ !
ग्रह निर्धारित करेंगे कि मुझे सफल होना हैं या असफल ???
मेरे रोग ग्रहों की वजह से हैं ! मेरे संबंधों में कड़वाहट ग्रहों की वजह से हैं !!
कैसी बाते हैं ये? ग्रह ये सब कर सकने के काबिल हैं भी ??
मेरी सफलता अंतरिक्ष में घूमते उन प्राणहीन खगोल पिंडो पर निर्भर करती हैं !!
अगर ये सच है भी, तब भी ये न्यायपूर्ण तो बिलकुल नहीं हैं
ये है वे कुछ प्रश्न जो ज्योतिष का ज़िक्र आने पर बहुत से वैज्ञानिक सोच से ओत-प्रोत दिमागों में आने लगते हैं
इनका उत्तर जानने से पहले “निर्माता” और “सूचक” का फर्क समझिए।
हमारे साथ जो भी घटनाये होती हैं वे पूर्व निर्धारित हैं। जो कुछ इस जन्म में हमारे साथ होगा वह हमारे पूर्व कर्म और हमारी आत्मा की कार्य-योजना (agenda ) के तहत ही होगा। हमारे कर्म हमारा भाग्य “रचते हैं” और जन्म के समय आकाश में ग्रहों की स्थिति उस भाग्य को “बताती हैं।”
एक बच्चा किसी निश्चित दिन किसी निश्चित घंटे किसी निश्चित क्षण में जन्म लेता हैं ये वही क्षण होता है जब आकाश में खगोलीय किरणें उसके कर्मों के साथ एक गणितीय-साम्य (mathematical harmony) में होती हैं ! उसकी कुंडली एक रेखाचित्र हैं जो उसके निश्चित अतीत और अटल भविष्य को बताती हैं।
तो ग्रह बेवजह मुसीबतें उत्पन्न करने का कार्य नहीं करते, वे बताते हैं की क्या होने वाला हैं।
अब अगला प्रश्न ये आता हैं की अगर ग्रह बस सूचक मात्र हैं तो ज्योतिषी ग्रहों की शांति और ग्रहों को मजबूत करने के उपाय क्यों बताते हैं ? व्रत, मन्त्र, पूजा-पाठ, दान-पुण्य, मोती-मणिक्य-पन्ना-पुखराज सब किसलिए ?
ग्रह सूचक का कार्य तो करते हैं पर वे मात्र सूचक नहीं हैं जैसे- थर्मामीटर (Thermometer). अगर आपको बुख़ार हैं तो थर्मामीटर कितना तापमान हैं यह बताएगा। अब आप थर्मामीटर को शांत करने के कितने भी उपाय कर लें उस से आपका बुख़ार तो कम नहीं होगा।
पर ग्रह थर्मामीटर की तरह मात्र सूचक नहीं हैं। वे सूचक भी हैं और कारक भी। ग्रह हमारे मन को और हमारी प्रकृति (वातावरण) को भी प्रभावित करते हैं वैसे ही जैसे मौसम हमें प्रभावित करता हैं। ठण्ड हैं तो ठण्ड लगेगी ही पर सर्दियों में प्रत्येक व्यक्ति बीमार नहीं पड़ जाता। बीमार वे ही पड़ते हैं जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती हैं। इसी प्रकार ग्रहों की किरणों से प्रभावित होना तो है पर कितना प्रभावित होना हैं और किस तरह से प्रभावित होना हैं यह हमारी आत्मा के संस्कारों पर निर्भर करता हैं।
जैसे सर्दियों का मौसम अपने आप में इस बात का “सूचक” हैं की अब आपको अपने खान-पान और वस्त्र आदि में कुछ बदलाव लाने होंगे वरना आप बीमार हो सकते हैं और वही सर्दी का मौसम आपके ठण्ड से बीमार हो सकने का कारण भी हैं।
जन्म के समय यह निश्चित हो जाता हैं की बच्चें को कौनसे ग्रह से कितनी रश्मियाँ मिलेंगी और किस तरह की मिलेंगी (उस आत्मा के पूर्व कर्मों के आधार पर यह निश्चित होता हैं ) प्रत्येक आत्मा को जन्म लेने के लिए उस निश्चित क्षण तक प्रतीक्षा करनी होती हैं जब ग्रह उस स्थिति में आये जो उसके कर्मों के आधार पर उसके लिए अनुकूल हों। नौ ग्रह, 27 नक्षत्र, 12 राशियाँ और अनेकानेक अन्य खगोलीय स्थितियाँ प्रत्येक कुंडली को अद्वितीय (unique) बनाते हैं।
एक उदहारण देखिये, जब आकाश में मंगल की स्थिति मजबूत होती हैं उस समय जन्म लेने वाले बच्चे स्वभाव से साहसी होते हैं वंही अगर मगल अस्त हो या कमजोर स्थिति में हो तो उस समय जन्म लेने वाले बच्चे स्वभाव से भीरु (डरपोक) होते हैं।
अब ऐसा नहीं हैं की अनायास (by chance) ही किसी का जन्म ऐसी ग्रह स्थिति में हो गया हो, और मंगल उसे साहसी होने या डरपोक होने के लिए बाध्य कर देगा। जो आत्मा साहस का संस्कार ले के आ रही हैं वह सबल मंगल की स्थिति में जन्म लेगी जब उसे मंगल की रश्मियां अधिक मिल रही होंगी और जो कायरता का संस्कार ले के आ रही होगी वह कमजोर मंगल की स्थिति में जन्म लेगी जब मंगल की रश्मियां कम मिल रही होंगी। यानि कोई भी बालक तभी जन्म लेगा जब ग्रहों की रश्मियां उतनी ही मिल रही हो जितनी उसके पूर्व कर्मों और आत्मा की भावी कार्य योजना (agenda) के अनुरूप हो।
व्रत, मन्त्र जाप या रत्न आदि धारण कर के इन रश्मियों की ग्रहण कर सकने की क्षमता परिवर्तित की जा सकती हैं पर केवल एक सीमा तक।
हम सभी कुछ निश्चित सबक सीखने के लिए जन्म लेते हैं, यही हमारी आत्मा की भावी कार्य योजना (agenda) होती हैं। दो जन्मों के मध्य के समय आत्मा यह जानती हैं की धरती पर अभी कितना काम बाकि हैं इसी आधार पर आत्मा भावी जीवन का स्वरुप चुनती हैं। ऐसा परिवार, ऐसे रिश्ते, और ऐसी चुनौतियां चुनती हैं जो उन सबकों को सीखने के लिए उपयुक्त पृष्ठभूमि तैयार करते हैं। पर जन्म लेने के बाद हम उस आत्मा-चेतना (soul consciousness) की अवस्था से दूर हो जाते हैं और हमे याद नहीं रहता की इस जन्म का उद्देश्य क्या हैं। जन्म कुंडली आत्मा के अब तक के अर्जित संस्कारों और उसकी कार्य-योजना का रेखा चित्र हैं। ज्योतिष वह साधन हैं जो ग्रहों की इस सांकेतिक भाषा की व्याख्या (decoding) करता हैं। ज्योतिष वह विज्ञानं हैं जो हमें हमारे जीवन के उद्देश्य (purpose of life) से परिचित करवाता हैं। कौनसी कमियां हैं जिन पर कार्य करना हैं, क्या सीखना हैं, यह जानना ही ज्योतिष विज्ञानं का वास्तविक उपयोग हैं। यह अध्यात्म की वह सांकेतिक भाषा हैं जिसके द्वारा ग्रह-नक्षत्र हमसे बात करते हैं।