आध्यात्मिक होना… मतलब?

आध्यात्मिक होना… मतलब?

चाहे आप किसी भी धर्म में आस्था रखते हों, हम में से ज्यादातर इस बात पर तो यकीन रखते ही हैं की हमारे चारों और कोई अदृश्य शक्ति तो हैं। कभी शाश्वत सत्य की खोज, कभी ग्रह-नक्षत्रों की गणना, कभी आत्मा की यात्रा की खोज, कभी अनेकानेक अनुत्तरित आध्यात्मिक चमत्कारिक घटनाओं का मंथन कर के हम इस शक्ति को पहचान सकने का, इस से जुड़ सकने के यथासंभव प्रयास करते रहते हैं।

हो सकता हैं की आध्यात्मिक यात्रा ने आपको अभी-अभी आकर्षित करना शुरू किया हो…. या ये भी हो सकता हैं कि एक अरसा बीत चुका हैं आपको आत्मा के पारलौकिक स्वरुप को स्वीकारें। दोनों ही सूरत में जब कि सतही जीवन से ऊपर उठने की ललक आप में जग चुकी हैं तो प्रश्न आता हैं कैसे बढ़ें इस मार्ग पर…?

क्या सुबह शाम कुछ देर ध्यान में बैठना काफी हैं ? और बीच का सारा समय… उसका क्या? इस संसार में रहते हुए, इन्हीं परिस्थितियों से दो-चार होते हुए अपनी चेतना को सजग रखना क्या आवश्यक नहीं हैं ? आप ये अवश्य ही जान चुके होंगें की ये राह उतनी सरल नहीं हैं ! इस राह में संघर्ष हैं – स्वयं से और अगर आपका कोई साथी है तो वो आप स्वयं ही हैं।

आध्यात्म सिर्फ सुबह शाम एक घण्टे का ध्यान नहीं हैं, आध्यात्म हैं — हर क्षण की सजगता,

तो हर क्षण अपनी चेतना को जाग्रत कैसे रखें?

1. नया सीखने और सीखें हुए को भूलने के लिए तैयार रहें !

अपने आध्यात्मिक पहलू को तराशते समय जो कुछ भी आपको मिलेगा वह सदा के लिए हो यह आवश्यक नहीं हैं। अपने आप को इस बात के लिए तैयार रखें कि जो कुछ भी आपके मार्ग में आएगा चाहे गुरु हो या ज्ञान वह ठहरने के लिए नहीं आया हैं। इस मार्ग पर बहुत बार आपको पुराने विश्वास छोड़ने होंगे, स्वयं को यह याद दिलाते रहना होगा की आध्यात्म कोई मायावी स्थान नहीं हैं, यह स्वयं को ऊपर उठाने की एक यात्रा हैं।

2.  याद रहें की ये कोई प्रतिस्पर्द्धा नहीं हैं !

ये न समझें की इस आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत अभी ही हुई हैं, और ना ही आपके आस-पास के लोगों के साथ आपकी कोई प्रतिस्पर्द्धा चल रही हैं। हम सभी एक आध्यात्मिक यात्रा पर हैं, कौन कब जाग कर इसका अनुभव कर लेता हैं यह अलग बात हैं। आपका ध्यान अपने अनुभवों, अपनी भावनाओं, अपने सीखने और स्वयं के विस्तार पर केंद्रित रहना चाहिए। ध्यान केंद्रित रहें सिर्फ जो आपके अंदर चल रहा है उस पर!

3. आध्यात्मिक गुण सीखने के लिए अपनी भावनाओं को दबाएं नहीं !

आध्यात्मिक होने का अर्थ शांत, सहज होना हैं पर ऐसा होने की जल्दबाज़ी में अपनी भावनाओं का दमन न करें। गुस्सा आये तो दबा दिया, दुखी हुए तो दुःख को दबा दिया क्योंकि आध्यात्मिक लोग तो भावनाओं से ऊपर उठे होते हैं। पर वास्तविक आध्यात्मिकता भावनाओं को दबाने में नहीं हैं बल्कि भावनाओं को सहजता में बदल देने में हैं।

जब भी आपको क्रोध आये तो परखिये की कैसी परिस्थिति में आपको क्रोध आता हैं, आप क्रोध आने पर कैसे व्यवहार करते हैं और फिर क्या होता हैं जिससे आपका क्रोध शांत होता हैं। इन सभी स्थितियों का रिकॉर्ड रखना शुरू कीजिए। अपने आप को पढ़िए। जो कुछ आप अनुभव करते हैं उसे अच्छी तरह से खोल कर परखिये। अगली बार वैसी परिस्थिति आने पर आप पाएंगे की क्रोध आने से पहले ही आप उसे परखने के लिए तैयार हो जाते है और नतीजा… क्रोध का आवेग स्वयं की कम हो जायेगा। भावनाओं के धागों को सुलझाते रहिये उन्हें यूँ ही छोड़ देने से उलझ कर गांठें पड़ जाती हैं। 

4. परिवर्तन से डरिये मत !

आत्म-विकास और आध्यात्मिक विस्तार का मूल बिंदु ही है स्वयं को एक इंसान के रूप में श्रेष्ठ बनाना। स्पष्ट हैं की इसके लिए हमें अनवरत परिवर्तनों से गुजरना होगा। आपकी राय बदलेगी, आपके विश्वास बदलेंगे, आपकी दिनचर्या बदलेगी, आपकी दैनिक गतिविधियाँ भी बदलने लगेंगी। ये सभी बदलाव ही तो प्रमाण हैं की आप अपनी यात्रा पर आगे बढ़ रहे हैं। इस बदलाव का स्वागत कीजिये !

5. ‘अपने जैसे’ लोगों के संपर्क में रहिये !

आप पाएंगे की अनायास ही आपको अपने जैसी सोच वाले लोग अधिक मिलने लगें हैं। ऐसे लोग मिलते हैं जो वही किताबें पढ़ते है जो आप पढ़ते हैं, उनसे बातें कीजिये, उनके साथ समय बिताइए, एक दूजे के साथ विचार/अनुभव साझा कीजिये, एक दूजे का सम्बल बनियें। उनसे कुछ सीखने को मिले तो उसके लिए आभार व्यक्त कीजिये। आभारी रहिये अपने गुरु के, अपने मित्रों, अपने शत्रुओं के क्योंकि ये सभी आपको कुछ न कुछ देने ही आये हैं। जीवन में बे-वजह कोई भी नहीं मिला हैं न मिलेगा !

6. हमेशा, हर बात से कुछ सीखने का प्रयास कीजिये !

अंततः आध्यात्मिकता का अर्थ हैं स्वयं को भीतर उतरना, अपने अंतर्तम को गहराई से जान लेना। ये गहरी समझ आती हैं — करुणा से, आभार से, आनंद से। जब आप अपने हर अनुभव में ‘क्या सबक छुपा हैं’ ये देखने लगते हैं, अपने मन में उठने वाले हर भाव के पीछे की कहानी को महसूस करने लगते हैं, तो आप दिन भर में होने वाले प्रत्येक अनुभव के पीछे छुपे सबक को देखने भी लगते है और सीखने भी लगते हैं। अब आप अपने सर्वोत्तम संस्करण (version) का निर्माण कर रहे होते हैं।

यही है आध्यात्म, मानव होते हुए अपनी आत्मा को श्रेष्ठतम स्तर तक ले जाना।

मेरे सहयात्री आपकी आध्यात्मिक यात्रा आनंदमय  हो…!

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