कुदरत का कानून – Law of Karma !
लॉ ऑफ़ कर्मा (law of karma) यानि “कर्म का सिद्धांत” या “कुदरत का कानून” क्या अर्थ है इसका?
कर्म का अर्थ है “कोई कार्य करना”
“कारण और परिणाम” का सिद्धांत (law of cause and effect) हमें बताता है की हर कार्य का एक परिणाम होता हैं। हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती हैं। यानि जो कुछ भी हम करते हैं (अच्छा या बुरा) उसके परिणाम हम तक अवश्य ही आते हैं।
लॉ ऑफ़ कर्मा कैसे काम करता हैं ?
रोजमर्रा की कुछ साधारण घटनाओं में इसे देखते हैं
दृश्य 1
मैंने आपसे 100 रु उधार लिए। एक हफ्ते बाद हम फिर से मिलें और आपने मुझसे अपने सौ रुपए मांगे। मैं हैरान हो कर कहूँ, “कौनसे सौ रुपये की बात कर रहे हैं आप? “
आप मुझे याद दिलाते हैं की वो सौ रुपये जो मैंने पिछले हफ्ते लिए थे….
और मैं कहूं “अच्छा… पता नहीं लिए होंगे। पर उस दिन मैंने नीले रंग के कपडे पहने थे… आज मैंने हरे रंग के कपडे पहने हैं ! तो आप मुझसे उन रुपयों की बात क्यों कर रहे हैं जो मैंने किसी और रंग के वस्त्र पहन कर लिए थे !! आज मेरे वस्त्रों का रंग बदल चुका हैं और एक बार मैं अपने वस्त्र बदल लूँ तो पिछले हिसाब किताब मुझे याद नहीं रहते। इसलिए आपको भी अब वो सब भूल जाना चाहिए।”
तो क्या मेरे इस तर्क से आप सहमत हो कर अपने रुपए भूल जायेंगे ??? नहीं ना ?
दृश्य 2
मान लीजिए आप मुझ पर विश्वास करते हैं और उसी भरोसे का फायदा उठा कर मैं आपको ठग लूँ… धोखा दे दूँ …
थोड़े दिनों बाद हम कहीं मिलें तो अब मुझे देख कर आपके मन मैं कैसे भाव आएंगे?
स्वाभाविक हैं की अब आप मुझसे बात करना भी पसंद नहीं करेंगे, हो सकता हैं की आप मुझसे नफरत भी करें। अब मैं ये कहूं ,” अरे क्या आप भी अभी तक उसी बात के बारे मैं सोचते हैं ! देखिये आज तो मैंने सफ़ेद वस्त्र पहने हैं जब आपको धोखा दिया होगा तब तो नीले वस्त्र पहने हुए थे। आप सफ़ेद वस्त्र वाले इंसान को नीले वस्त्रों वाले इंसान से क्यों जोड़ के देखते हैं ? भूल जाइये वो सब।”
भूल जायेंगे आप???
बिलकुल नहीं , हैं ना?
अवश्य ही आप सोच रहें होंगे की वस्त्रों के बदल जाने से व्यक्ति तो नहीं बदल जाता ! मैं चाहे जिस भी रंग के वस्त्र पहनूं , “मैं “हूँ तो वही व्यक्ति। और ये सारा हिसाब किताब, ये सारे सम्बन्ध, ‘मेरे’ और ‘आपके’ बीच के हैं ना कि ‘मेरे वस्त्रों’ और ‘आपके वस्त्रों’ के बीच।
यहीं हैं मूल तथ्य ! हमारा शरीर भी ऐसा ही एक वस्त्र मात्र हैं जिसे हमारी आत्मा ने पहन रखा हैं !
और ये सारे हिसाब किताब दो आत्माओं के बीच हैं ना की दो शरीरों के बीच। जब किसी घटना के घटने और हमारी अगली मुलाकात के बीच का समयांतराल कुछ दिनों… महीनों (या वर्षों ) का भी हो तो हमें वो बात याद रह सकती हैं और हमें भान रहता हैं की हम “उस व्यक्ति” के प्रति नाराज़गी की भावना क्यों रखें हुए हैं। हमारे इसी जीवन मे भी हमारे बचपन की कुछ ऐसी धुंधली स्मृतियां होंगी। ये स्मृतियां हमारे विद्यालय के किसी अध्यापक से जुड़ी हो सकती हैं या पड़ौस के किसी व्यक्ति से या किसी और से…
हो सकता हैं अपने प्राइमरी स्कूल की किसी अध्यापिका को हम इसलिए याद रखे हुए हैं की वे बहुत प्यार से बात करती थी, बच्चों के नए नए खेल खेलातीं थी। और ये भी हो सकता हैं की उसी समय के एक अध्यापक हमें इसलिए याद हैं की वे बहुत सख्त थे, छोटी छोटी गलतियों पर पिटाई किया करते थे, इतने गुस्से वाले थे की उनसे कुछ पूछ सकने की हिम्मत ही नहीं होती थी।
क्या हमें इन दोनों अध्यापकों के साथ घटी “सारी घटनाएं” याद हैं जिनकी वजह से हम आज उन्हें “वैसे रूप” में याद रखे हुए हैं ? शायद नहीं। हो सकता हैं हम में से कुछ को बचपन की कोई एक आध घटना याद हो भी पर सब कुछ तो नहीं याद अब। हालाँकि हमें ये तो नहीं याद की “वास्तव में उन्होंने क्या क्या कहा था या किया था ” पर हमें ये याद हैं कि उन्होंने हमें कैसे “अनुभव” दिए थे…. हमने तब कैसा महसूस किया था। घटनाओं की स्मृति मिट गयी और रह गया वह “प्रभाव” (impression) जो हमारे मन पर आज भी हैं।
ठीक ऐसे ही जब हम इस शरीर को छोड़ते हैं और नया जन्म लेते हैं तो पूर्व जन्म के शरीर से जुड़ी सारी घटनाएं विस्मृत हो जाती हैं बस रह जाते हैं वे “प्रभाव” जो हमारी आत्मा अपने साथ ले जाती हैं ! और जब हम उस आत्मा से पुनः मिलते हैं तो हमें वे घटनाएं बेशक न याद हों परन्तु हमारी आत्मा की गहराइयों में कायम वे प्रभाव (impressions) हमारे आज के सम्बन्धों को प्रभावित करते हैं।
याद रखिये आत्माएं समूह में आती है। जो आज हमारे साथ हैं वे पूर्व जन्म में भी हमारे साथ थे और आगे के जन्म में भी हमारे साथ होंगे ! हालाँकि हमारे बीच सम्बन्ध बदल जायेंगे। जो आज माँ हैं वह कल बहन या बेटी या किसी भी और रूप में आ सकती हैं पर हमारे निकट के ये लोग होंगे हमारे साथ ही ये तय हैं।
( डॉ. ब्रायन वेिस की पुस्तक “मेनी लाइव्स मैनी मास्टर्स ” से उद्बोधित )
दृश्य 3.
कई बार ऐसा होता हैं कि हमें किन्ही अप्रत्याशित खर्चों का सामना करना पड़ता हैं। मान लीजिए आप गाड़ी चलने में कुशल हैं पर एक दिन किसी मोड़ पर एक पल को आपका ध्यान भटका और आप किसी कि गाड़ी को टक्कर मार देते हैं। आपको उसे भरी हर्जाना देना पड़ता हैं और आज भी आप ये समझ नहीं पाते की कैसे आपका ध्यान भटक गया और आप देख नहीं पाये उस गाड़ी को !
या कभी कोई आपसे किस स्कीम का छलावा दिखा कर पैसे ठग कर ले जाता हैं।
ये वही लोग थे जिनसे आपने कभी पैसे लिए थे पर लौटाए नहीं ! वस्त्र बदल गये ऋण देने वाला और ऋण लेने वाला इंसान नहीं बदला… शरीर बदल गए, स्मिृतियां मिट गयी पर आत्मा जानती हैं किस से क्या वसूलना हैं। जब तक ऋण चुकता न हो जाये…. हिसाब चला करते हैं !
मुझे याद नहीं रहेगा की में ऋणी हूँ आपको भी याद नहीं रहेगा कि मुझ पर कोई ऋण बकाया हैं पर “कर्मा का कानून ” याद रखेगा ! नियति किसी न किसी तरीकें से आपको और हमें आमने सामने ले ही आएगी क्यों कि ऋण तो बकाया रह ही नहीं सकता उसे तो उतारना ही होगा।
और बात हमेशा पैसों की ही नहीं होती। सम्बन्धों में भी हम देखते हैं कि कभी तो बिना किसी ठोस वजह के कोई हमें बहुत अच्छा लगता हैं बिना बहुत ज्यादा प्रयास किये भी किसी के साथ हमारे सम्बन्धो में सहज ही मिठास और समझबूझ बनी रहती हैं और कभी किसी रिश्ते में हमारे हज़ार कोशिशों और सहनशीलता के बावजूद कड़वाहट और अविश्वास बना ही रहता हैं।
कारण ये हैं की पिछले जन्म के वे प्रभाव (impressions) हमारी आत्मा आज भी लिए हुए हैं। जिनके साथ सम्बन्धो में बिना अतिरिक्त प्रयास के भी मधुरता हैं उसका आधार पिछले जन्म के मधुर अनुभव हैं जो कायम है आत्मा की गहराइयों में।और जहाँ कड़वाहट हैं, बेवजह का अविश्वास है उसके मूल में हैं पूर्व जन्म का दिया गया कोई बड़ा धोखा, कोई गहरी तकलीफ। और हम दोनों में से जिस भी आत्मा ने वह धोखा खाया था जो उस तकलीफ से गुजरी थी वह अब उस दूसरी आत्मा पर विश्वास नहीं ही कर पायेगी। निश्चित रूप से हम दोनों को याद नहीं हैं की क्या हुआ था पर आत्मा पर छपा हुआ वो गहरा प्रभाव ! वह प्रभाव वहां आज भी हैं !
जिसे आम तौर पर हम सुनते हैं “कर्मो का फल”, इसका अर्थ ही होता हैं पूर्व जन्म में की गयी गलतियों का प्रायश्चित करना। जिन गुणों के अभाव में हमने वे गलतियां की होती हैं अगले जन्म में हमें ऐसी परिस्तिथियाँ दी जाती हैं जिनके कारण हमें वे गुण सीखने पड़ते हैं। कभी भाग्य हमें पिछले जन्म से बिलकुल विपरीत भूमिका में ला कर खड़ा करता हैं जिस से की हम उस व्यक्ति की मनोस्तिथि को, उसकी पीड़ा को समझ सके जो हमने उसे दी होती हैं। या हमें ऐसा जीवन मिलता हैं जिसमे हमें अपने उस नव विकसित गुण को आज़मा सके की क्या वो हमारा संस्कार बन चुका है या नहीं और ऐसा जांचने के लिए हमें ऐसी परिस्तिथियां मिलती हैं जहाँ यह देखा जाता हैं की क्या अब भी हम वही गलती दोहराते हैं या अपने नव विकसित गुण के अनुसार सही व्यवहार करते हैं।
दोनों ही स्तिथियों में हमें चुनौतियां दी गयी होती हैं की क्या हमने अब वह आध्यात्मिक सबक सीख लिया हैं जिसे हम अपने पूर्व के जन्मों में नहीं सीख पाए थे। हमसे यह अपेक्षा की जाती हैं की हम अपनी समस्याओं का सामना करें, उन्हें सुलझाएं और ऐसा करते हुए हम नैतिक दयितवों का उल्लंघन न करें। ऐसा कर के हम न सिर्फ अपने आस पास के लोगों के लिए स्तिथियाँ बेहतर बन सकेंगे बल्कि स्वयं अपने मानसिक स्तर को ऊँचा उठा सकेंगे और हमारी आत्मा अपनी यात्रा के अगले पड़ाव पर पहुँच सकेगीं।
ईश्वर से प्रार्थना करने से हमारा आत्म बल बढ़ता हैं और आत्मबल (इच्छा शक्ति) से हमें अपनी आदतों, संस्कारों पर कार्य करने में सहायता मिलती हैं। पर यदि हम यह उम्मीद करें की पूजा पाठ करने से, व्रत-उपवास करने से, मन्नत माँगने से ईश्वर मेरे और मेरे कर्म-फल के बीच दखल देगा और उसकी कृपा या चमत्कारों से मेरी समस्याऐ दूर हो जाएँगी…. तो ये हमारी भूल हैं !
हमारा परम पिता हमसे निःसन्देह बहुत प्रेम करता हैं पर उसकी भूमिका क्या है यह वास्तविकता भी समझनी आवशयक हैं अन्यथा हम कभी उसे कृपालु कह कर चरणों में झुके जायेंगे तो कभी निर्दयी और अन्यायी कह के आंसू बहाएंगे।
मान लीजिए आपके पास बैंक में लॉकर हैं। आप अपने बैंक लॉकर में जो कुछ भी रखतें हैं वह उसी में रहता हैं और जब भी आप उसे खोलते हैं आपको उसमे वही मिलता हैं “जो आपने उसमे रखा था” आपका बैंक मैनेजर यह सुनिश्चित करता हैं की आपका सामान आपके लॉकर में सुरक्षित रहें। अब आप अपने बैंक मैनेजर की कितनी भी प्रशंसा करें, उसकी पूजा भी करने लग जाएँ तब भी वह आपके लॉकर के सामान ओ बदलने वाला नहीं हैं। अगर आपने अपने लॉकर में सोना चाँदी रखा हैं तो वही मिलेगा और अगर पत्थर रख आये है आप उसमे तो जब भी खोलेंगे उसमे पत्थर ही मिलेंगे और आपका बैंक मैनेजर यह सुनिश्चित करेगा की आपको आपका सामान सुरक्षित आप ही के लाकर में मिलें !
ऐसा ही एक लॉकर हमारा “कार्मिक अकाउंट” (karmik account) हैं और मैनेजर हैं ईश्वर। वह यह सुनिश्चित करता हैं की कर्म के सिद्धांत की ये कार्यप्रणाली सुचारु रहें पर वह हमारे लॉकर के सामान में कोई फेरबदल नहीं करता।
तो फिर ईश्वर हमारे लिए क्या कर सकता हैं ?
वह हमें अच्छी और फायदेमंद निवेश योजनाओं (investment plans) के बारे में बता सकता हैं जिस से की हम अपनी बचत (नेकियाँ / उत्तम कर्म ) का पूरा फल प्राप्त कर सकें। वह हमें उन आध्यात्मिक संस्कारों को आत्मसात करने की ऊर्जा दे सकता हैं जिनकी बदौलत हम अपने लाकर में रखने के लिए अनमोल आध्यात्मिक रत्न कमा सकेंगे। पर वह सिर्फ बता सकता हैं, सद्मार्ग पर चलने की ऊर्जा दे सकता हैं। क्या करना हैं और क्या नहीं यह अंतिम निर्णय फिर भी हमारा ही होगा, निर्णय के उपरांत किये गए कर्म भी हमारे ही होंगे और हमारा ही होगा उन कर्मों का फल। वह हमें विवेक और आत्मबल (wisdom & willpower ) दे सकता हैं … बस !
अपनी आदतों, संस्कारों को पहचान कर, अपने विवेक और आत्मबल का प्रयोग कर हम उनमे परिवर्तन ल सकतें हैं ताकि हम जीवन के हर मोड़ पर सही निर्णय ले पाएं। अपने कर्म को बदल कर हम अपना भाग्य बदल सकतें हैं।