एक यात्रा – अंश से अनंत तक !

एक यात्रा – अंश से अनंत तक !

हमें मृत्यु से डर लगता हैं क्यों कि हम नहीं जानते कि मृत्यु के बाद क्या होता हैं। धरती पर हमारा जीवन वास्तव में गुरुकुल में शिक्षा पूर्ण करने जैसा है जो पूर्ण करके हमें ‘अपने घर’ जाना हैं। जी हाँ हमारे अपने घर।

इस दुनियाँ से अलग एक और दुनियां भी हैं…रूहानी दुनियां, जिसे हम परलोक भी कहते हैं जो इस लोक से अलग हैं।ये इस प्रश्न का उत्तर भी हैं कि हम कहाँ से आये हैं और कहाँ जाना है ?

हम आत्माएं धरती पर कुछ विशिष्ट आध्यात्मिक सबक सीखने आती हैं। ये सबक कुछ और नहीं बल्कि नैतिक गुण हैं जैसे सत्य, प्रेम, अहिंसा, विश्वास, शांति, धैर्य, करुणा, पवित्रता। जैसे-जैसे आत्मा ये सबक सीखती जाती हैं वह आगे से आगे उन्नत होती जाती हैं।

मृत्यु के समय जब आत्मा शरीर त्यागती हैं तो मार्गदर्शक आत्माएं (guiding souls) उसके लिए आगे का मार्ग प्रशस्त करती हैं। हालाँकि भटकी हुई यानि अपने मूल गुणों से दूर हो चुकी आत्माएं जिन्होंने धरती पर अपना जीवन विभिन्न प्रकार के कुकर्मो में बिताया होता हैं उन्हें मार्ग प्रशस्त करने वाली दिव्यत्माओं (guiding souls ) का साथ नहीं मिल पाता। ऐसे में आगे बढ़ पाना उनके लिए बहुधा कठिनाइयों भरा रहता है।

मृत्यु के बाद कहाँ जाती है आत्मा? अब शायद आपके दिमाग में स्वर्ग-नर्क की अवधारणा आने लगेगी। हाँ, होते है स्वर्ग-नर्क पर वैसे नहीं जैसा हमने पुरातन कहानियों में सुना है जहाँ स्वर्ग का अर्थ हैं बहुत सारी सुख सुविधाएं, सुन्दर अप्सराएं, स्वादिष्ट भोजन, रमणीय दृश्य और भी न जाने जाने कैसे कैसे अवर्णनीय सुख और नर्क यानि भांति-भांति के असहनीय कष्ट भोगना। स्वर्ग-नर्क कोई ऐसे स्थान नहीं है जहाँ सुख भोगे जाएं या सज़ा भुगती जाये। ये दो अलग तल हैं जहाँ यह तय होता हैं कि अगला जन्म कैसा होगा। आइये इसे और बारीकी से देखते हैं –

ये रूहानी दुनियाँ या परलोक वास्तव में कई स्तरों में विभाजित हैं। इन स्तरों (dimensions ) का वर्गीकरण का आधार उनमे रहने वाली आत्माओं के स्तर (grades) हैं। परलोक के ये स्तर fourth dimensions से ninth dimensions तक हैं। जितना आत्मा ninth dimension के नजदीक जाती है उतना ही वह ईश्वरत्व (बोधिसत्त्व) की और उन्नत होती हैं। वहां तक पहुंचना हर आत्मा का ध्येय भी हैं चाहे आज हमें इसका भान हो या न हो। इन सभी नौ डाइमेंशन्स की यात्रा हर आत्मा के लिए अवश्यंभावी हैं। ये कुछ ऐसा ही है जैसे शिक्षा पूर्ण करने के लिए हमें छोटी कक्षा से बड़ी कक्षाओं में उत्तरोत्तर बढ़ते जाना होता है। ये पृत्वी हमारा स्कूल हैं जहाँ हम क़ुछ सबक सीखने के लिए आये हैं। जब तक हम संतोषजनक प्रगति नहीं करते अगली कक्षा में उन्नत नहीं किये जाते। ”  

                                                                                      “दी एसेंस ऑफ़ बुद्धा” पुस्तक से साभार

 

मरणोपरांत दायरा: यह चौथा और सबसे निचले स्तर का डायमेंशन होता हैं, इसके भी दो भाग होते हैं। इनमे निचला स्तर नारकीय दायरा कहलाता हैं जहाँ प्रेत तथा निम्न श्रेणी की आत्माएं रहती हैं। इन्होने पृथ्वी पर अपना जीवन दूसरों को कष्ट देने में ही बिताया होता हैं। इन्हें आगे के जन्म जटिलताओं भरे मिलने होते हैं क्यों कि ये आत्माएं अपने मूल गुणों जैसे प्रेम, अहिंसा, करुणा आदि से बहुत बहुत दूर होती हैं अतः आगे के जन्म इन्हे सख्ती से सही मार्ग पर लाने वाले रहते हैं।

यहीं, इसके ठीक ऊपर सूक्ष्म लोक होता हैं इसमें वे आत्माएं आती है जो पाप कर्मों में संलग्न तो नहीं रही होती हैं पर उनकी सोच दुनियाँ के मोह माया में ही उलझी रही होती हैं। इन्हें आगे के जन्मों में ‘अपनी स्वार्थ सिद्धि और मोह माया से ऊपर उठ कर सोचना’ सीखना होता है।

जब आत्माएं उस लोक में यानि अपने वास्तविक घर पर होती हैं तब वे जानती हैं की पृथ्वी पर अभी कितना काम बाकी हैं। यहीं वो समय होता हैं जब अपने पिछले कर्मो और आगे के सीखें जाने वाले सबकों के अनुसार उनके भावी जीवन की रूपरेखा तय होती हैं। इस समय आत्मा जानती हैं कि उसे किस पारिवार में जन्म लेना हैं और उसके सामने कैसी चुनौतियाँ आएँगी। इन सभी चुनौतियों उद्देश्य उन निश्चित सबकों को सीखाना ही होता है। 

“जितनी अधिक कठिनाइयाँ जीवन में आती हैं आत्मा को उतना ही अधिक सीखने को मिलता हैं।एक ऐसा जीवन जिसमें जटिल रिश्ते हों, जिसमे इंसान को बहुत कुछ खोना पड़े, बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़े, ऐसा जीवन आत्मा को अधिक से अधिक सबक सीखने का अवसर देता है। सीख लिए गए सबकों की परख  भी इन  चुनौतियों का सफलता पूर्वक सामना कर लेने में ही हैं। यहीं एक तरीका हैं आत्मा के लिए स्वयं को आगे के स्तरों के लिए उन्नत करते जाने का। अपनी उन्नति की गति बढ़ाने के लिए भी कई बार आत्मा अधिक कठिन जीवन का चुनाव करती हैं।”

                                                                    – ब्रायन वेिस की पुस्तक “मेसेजेस फ्रॉम दी मास्टर्स ” से साभार   

नेकी का दायरा: यह पाँचवाँ डायमेंशन हैं। यहाँ वे आत्माएं आती हैं जिनके विचारों में नेकी और अच्छाई का वास होता हैं। वे लोग जो दूसरो के साथ  व्यवहार करते हैं जैसा वे अपने साथ चाहते हैं। इस स्तर पर वे आत्माएं आती हैं जो दूसरों को प्रेम देने का गुण जानती हैं, जिनके ह्रदय में विनम्रता और पवित्रता का वास होता हैं। अब आगे के लिए उन्हें ऐसा जीवन  चुनना होता है जिसमें वे आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि का विकास कर सकें।    

प्रकाश का दायरा: यह छठा दायरा है। यहाँ वे आत्माएं आती हैं जो अपने मानव जीवन में दूसरों लिए बहुत ही बेहतरीन मार्गदर्शक सिद्ध हुए और जिन्होंने अपने उत्तम विचारों और रूहानी प्रेम पूर्ण व्यवहार से औरों के अशांत मन को शांति दी। छठे dimension के ऊपरी स्तर से उच्च आत्माओं का दायरा आरम्भ हो जाता हैं। यहाँ वे आत्माएं आती हैं जो अर्हत की अवस्था को प्राप्त कर चुकी होतीं हैं।

अर्हत की अवस्था: ऐसे लोग जिनमें ‘सब कर लिया’, ‘सब देख लिया’ जैसी भावनाएं आने लगती हैं और जिन्हें सांसारिक सुखों और भोग विलास में और आकर्षण नहीं रहता। ऐसा नहीं हैं की ये कोई “अलग ही” लोग होते हैं। हमारे जीवन में कितनी ही बार ऐसा होता हैं कि किसी वस्तु का हमें बहुत शौख था…जैसे बचपन में कोई खिलौना…

लड़कपन में वो पहली साइकिल… या शायद कलाई पर बांधने वाली कोई घड़ी… और ना जाने कितनी ही ऐसी चीजें जिन्हे पाने की लालसा इतनी थी की हम उसे पाने के तरीको पर दिन रात सोचा करते थे उसे पा कर कितना सुख मिलेगा इसके स्वप्न देखा करते थे… और फिर एक दिन हमने उसे पा भी लिया जी भर के उसका सुख भोग भी लिया पर क्या सारा जीवन हम उस चीज के लिए उतनी ही  दीवानगी कायम रख पाते हैं ? नहीं ना। बस ऐसे ही कई जन्मों तक इन संसारिक सुखों को भोगते हुए आखिर आत्मा इनसे विरक्त होने लगती हैं। धीरे-धीरे घटता हैं ये सब, पर ऐसा होना तय हैं और फिर चमचमाती रौशनियाँ.. महकते इत्र… रेशमी वस्त्र… तरह तरह के स्वादिष्ट पकवान और सभी तरह के इंद्रीय सुखों में रस नहीं रहता। ये सारे सुख बहुत सतही और मिथ्या प्रतीत होने लगते हैं। ध्यान (meditation) अब मन को आतंरिक शक्ति और आनंद देता हैं। सभी सांसारिक सुखों को प्राप्त करने की यात्रा का अंत… सांसारिक लक्ष्यों की प्राप्ति के स्वप्नों का अंत। एक प्रकार से सांसारिक यात्रा का अंत यहाँ होता हैं। इसका अर्थ ये नहीं की अब आगे जन्म नहीं लेने होंगे पर संसार के मायाजाल से आत्मा अब मुक्त हो जाती हैं। पूर्ण आतंरिक शांति पा लेना ही अर्हंत अवस्था हैं।

प्रकाश के दायरे में आ चुकीं आत्माओं द्वारा अर्हत अवस्था गहरे ध्यान और तपस्या द्वारा एक जन्म में भी प्राप्त की जा सकती हैं और इसे प्राप्त करने में कई-कई जन्म भी लग सकते हैं। अर्हंत अवस्था को प्राप्त कर चुकी आत्माएं अब बोधिसत्त्व / देवत्माओं के स्तर को प्राप्त करने की ओर अग्रसर होती हैं।    

छठे dimension की आत्माएं पूर्ण सत्य का ज्ञान प्राप्त करने की यात्रा तय करती हैं।

बोधिसत्व / देवत्माओं का दायरा: यह सातवां डायमेंशन हैं। यहाँ बोधिसत्व को प्राप्त आत्माएं आती हैं। यह पूर्ण पवित्र प्रेम का दायरा हैं। ये आत्माएं निःस्वार्थ मन के साथ जीव मात्र की  सेवा में संलग्न रहती हैं। बोधिसत्व क्या है? बोधिसत्व का अर्थ हैं “बुद्ध हो जाने” की मानसिक अवस्था को प्राप्त कर चुकी आत्माएं। यानि ऐसी मानसिक  व्यक्ति यह समझता हैं की इस जीवन के सारे सुख सारे दुःख नश्वर हैं…. क्षण भंगुर हैं। लोगों को संसार की कठिनाइयों  जूझते देख कर इनका मन करुणा से भर आता हैं   और अपने ह्रदय की गहराइयों से यह निश्चय कर लेते हैं कि ये अपना सारा जीवन दुखियारें  लोगों की सेवा में अर्पित कर देंगे और ये ऐसा ही करते भी हैं। आपने ऐसे लोगो के बारे में सुना होगा सम्भव हैं किसी को जानते भी हों। मदर टेरेसा को हम सभी जानते हैं। 

बौद्धत्व अवस्था अर्हत की अवस्था से बहुत आगे की अवस्था हैं। सैंकड़ो जन्म लग जाते हैं इस अवस्था को प्राप्त करने में। जब आप पापी से पापी व्यक्ति को, बुरे से बुरे रोग से ग्रसित व्यक्ति को प्रेम से गले लगा सकें, उसकी निःस्वार्थ भाव से सेवा कर सकें। ऐसे लोग जिन्हें देख कर साधारण लोगो का मन वितृष्णा से भर जाये उन्हें आप सहज ही ऐसे अपना लें जैसे माँ अपने बच्चे को अपनाती हैं।

बोधिसत्व सत्य प्रेम धैर्य अहिंसा और पर टिका हैं और इसकी सबसे बड़ी पहचान यही हैं की इसे प्राप्त लोग अपनी आत्मिक शांति के लिए दुनियां से अलग हो कर कहीं दूर कंदराओं में नहीं बस जाते बल्कि सक्रीय रूप से दुनियां से जुड़ जाते हैं किसी वाहवाही या कुछ भी पाने के लिए नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ अपने भीतर की अथाह करुणा के कारण… प्रेम वश…. जीवमात्र की सेवा को समर्पित।   

तथागत दायरा:  आँठवा डायमेंशन तथागत का दायरा हैं। यहाँ वे आत्माएं होती हैं जो बोधिसत्व की अवस्था को प्राप्त आत्माओं के मार्गदर्शक या गुरु होते हैं। तथागत अवस्था अत्यंत ही उच्च अवस्था हैं। ये अवस्था मानव शरीर की  सीमाओं के परे होती हैं। ये अपनी चेतना को एक साथ कई अंशों में बाँट सकते हैं। आवश्यक्ता पड़ने पर एक ही समय पर एक से अधिक स्थानों पर उपस्थित रह सकते हैं। हिमालय पर रहने वाले योगियों के बारे आपने सुना होगा जो सूक्ष्म शरीर के द्वारा कहीं भी आ जा सकते हैं। बोधिसत्व अवस्था वाले लोगो की तरह ये संसार के लोगो के सामने नहीं आते बल्कि इनका कार्य बोधिसत्व प्राप्त आत्माओं  मार्गदर्शन करना होता हैं। महागुरु होते हैं ये।समय और काल की सीमाओं से भी परे… आयुसीमा नहीं होती इनके लिए। ये अपने जीवन काल को हज़ारों वर्षों का कर सकते हैं। परमात्मा में विलीन होने की देहरी पर खड़ी सर्वोच्च एवं सर्वश्रेष्ठ स्तर की आत्मा। तथागत के उच्च स्तर पर आत्मा निर्वाण / मोक्ष को प्राप्त होती हैं।

ब्रह्माण्डीय दायरा: नौवां डाइमेंशन ब्रह्माण्डीय दायरा कहलाता हैं। यह वह उच्चतम स्तर हैं जहाँ सर्वोच्च शक्ति…  परमेश्वर…  “शिव” का वास हैं। वह जो प्रकाश का, प्रेम, करुणा और ज्ञान का मूल एवं अखण्ड स्त्रोत हैं। शिव  परमपिता हैं और सम्पूर्ण मानवता के आध्यात्मिक विकास के  मार्गदर्शक, ऊर्जा के स्त्रोत और परम आनंद के दाता हैं।

*** परमपिता परमेश्वर को विभिन्न धर्मों में भिन्न भिन्न नामों से जाना जाता  हैं जैसे कोई उसे “शिव” से जानेगा तो  पश्चिमी समुदाय उस सर्वोच्च शक्ति को  “Lord El Cantare” कह के पुकारेगा  धर्म में इस शक्ति का कोई और  नाम हो सकता हैं। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता।   

तो हमने देखा कि अंश से अनंत हो जाने की ये यात्रा मुझ आत्मा को कैसे तय करनी हैं। हम सभी इस अनंत यात्रा के साथी हैं। विज्ञानं इसे स्वीकारें या ना स्वीकारें… तर्कों में उलझा मस्तिष्क इसे माने या ना माने किन्तु परमपिता का अंश हमारी आत्मा इस सत्य को भली भाँति जानती हैं 🙂

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